सोमवार, 17 नवंबर 2008

कविताओं का कहना है क्या

भारी भरकम गहनों से सजी , 
दुल्हन का अपना रूप है क्या

भरी भरकम शब्दों से सजी , 
कविता का अपना रूप है क्या

भावों के बिना ये फीकी है , 
आधारों का कहना है क्या

सूरत और सीरत से सजे , 
श्रृंगारों का कहना है क्या

मुखड़े पे नज़र टिकती ही नहीं , 
चुम्बक का कहना है क्या

अलंकृत हो कविता शब्दों और भावों से ,
कविताओं का कहना है क्या

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