सोमवार, 3 जनवरी 2011

सनद शेष रहे ( नए साल का स्वागत है )

सीने में उठते बवंडर की
हर लहर कहाँ साहिल पाती
वरना शोर के सिवा न कुछ शेष रहे
बीच भँवर में दम तोड़ती
घुलती कच्चे घड़े की तरह
नामो-निशाँ भी न शेष रहे
मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा की
खुदाई में मिले
आदमी की सभ्यता के अवशेष रहे
जब जमीं न हो क़दमों तले
उल्टे लटके हों , नजर के सामने मगर
आसमाँ शेष रहे
सामाँ तो बंधा सबका है
युग के सीने पर आदमी के हस्ताक्षर
सनद शेष रहे


बीते हुए साल की छाप लिये
कुछ ऐसा कर गुजर जाएँ
मानवता का सिर ऊँचा हो
पीढ़ियों तक सनद शेष रहे
नए साल का स्वागत है
नए साल का स्वागत है

7 टिप्‍पणियां:

  1. शारदा जी,

    नववर्ष का स्वागत बहुत सुन्दर तरीके से किया है आपने.....शुभकामनायें|

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  2. आप ने बहुत सुंदर ढंग से नये साल का स्वागत किया, सुंदर कविता, धन्यवाद

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  3. कुछ ऐसा कर गुजर जाएँ
    मानवता का सिर ऊँचा हो

    सार्थक सन्देश.

    नीरज

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  4. सामाँ तो बंधा सबका है
    युग के सीने पर आदमी के हस्ताक्षर
    सनद शेष रहे
    Kya gazab likha hai!

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  5. बीते हुए साल की छाप लिये
    कुछ ऐसा कर गुजर जाएँ
    मानवता का सिर ऊँचा हो
    पीढ़ियों तक सनद शेष रहे

    ऐसी ही कामना के साथ
    हमारी जानिब से भी...
    ’नए साल का स्वागत है’
    आपको नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  6. आद.शारदा जी,
    आपकी कविता शब्द,शैली और भाव की गरिमा का उत्कृष्ट उदहारण है !
    बीते हुए साल की छाप लिये
    कुछ ऐसा कर गुजर जाएँ
    मानवता का सिर ऊँचा हो
    पीढ़ियों तक सनद शेष रहे
    नए साल का स्वागत है
    नए साल का स्वागत है

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद !

    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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