शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

लम्हे भर की बात नहीं

सपनों वाली रात नहीं 
दिन के उजाले साथ नहीं 
एक ज़रा सा दिल टूटे तो 
ये दुनिया अपने पास नहीं 

कहने लगे अपनी बातें 
रूह भटकती साथ नहीं 
मेरे मन की बात ही है 
क्या तेरे मन की बात नहीं 

मिल बैठें जो हम तुम दोनों 
ऐसे तो हालात नहीं 
चलना युगों तक , है ये 
लम्हे भर की बात नहीं 

6 टिप्‍पणियां:

  1. मिल बैठें जो हम तुम दोनों
    ऐसे तो हालात नहीं
    चलना युगों तक , है ये
    लम्हे भर की बात नहीं

    ....वाह! अंतस को छूती बहुत सुन्दर रचना...

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  2. कविता प्‍यारी लगी, धन्‍यवाद

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  3. मिल बैठें जो हम तुम दोनों
    ऐसे तो हालात नहीं
    चलना युगों तक , है ये
    लम्हे भर की बात नहीं
    बहुत ही बढिया ... मन को छूते भाव रचना के

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  4. सुन्दर...
    हृदयस्पर्शी भाव....

    सादर
    अनु

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