गुरुवार, 30 मई 2013

ये लीची और आम के पेड़

ये आँगन में खड़े लीची और आम के पेड़  
झुक गईं हैं डालियाँ फलों के बोझ से 
बरसों से खड़े हैं राह तकते 
बोता है कोई और , खाता है कोई और 

जीते हैं हम अपने जतनों से 
पाते हैं सदा फल अपने कर्मों का 
फलदार हों , छायादार हों 
कौन आता है तेरे साये में पलने को 

दिल ने माँगा सदा पुराना 
ज़ेहन आगे देख न हारे 
नन्हें पौधे जवाँ हुए हैं 
और जवाँ दिल हुए हैं बूढ़े 
झुक-झुक आई हैं डालियाँ 
धरती से कुछ कहती हुईं 
हजारों मील दूर है कोई 
मिट्टी की महक को सीने से लगाये हुए 
कोई कैसे है इन नजारों को भुलाये हुए 

रविवार, 12 मई 2013

माँ वो हस्ती है

माँ वो हस्ती है जिसे ,यादों से मिटाना नामुमकिन 
जमीं पर चलाती है जो उँगली पकड़ , 
आसमाँ ओढ़ाती है दुआओं का जो ज़िन्दगी भर 

अहसास की खुशबू है 
अनमोल सा रिश्ता है 
आराम की छाया है 
हर नींव में मुस्कराती है वो 

दामन काँटों से भरा 
फूलों सा सहलाती हर दम 
हस्ती गँवा कर भी 
हर सू नजर आती है वो